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ॐकार, बिग-बेंग, शिवलिंग और स्रष्टि की उत्त्पति

प्राचीन सम्रद्ध भारत
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पूरा पढ़े : http://vedicbharat.com/2013/03/om-bigbang-shivalingam-universe.html

दोस्तों सर्वप्रथम तो आज महाशिवरात्रि के महापर्व पर सभी को महाशुभकामनाएँ
पुराणों के अनुसार आज ही के दिन (फाल्गुन कृष्णपक्ष चतुर्दशी) स्रष्टी उत्पति हुई ।
कुछ वर्षों पश्चात इसी तिथि को महादेव और भगवती पार्वती  का विवाह हुआ ।

तथा इसके कुछ वर्षों पूर्व अथवा पश्चात इसी तिथि को महादेव ने चन्द्र को दक्ष के श्राप से मुक्त किया और चन्द्र ने गुजरात के प्रभास क्षेत्र में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना की ।

प्रार्थना है हमारे महादेव और भगवती पार्वती  इस घटिया युग में हमारा मार्गदर्शन करें ।

सर्वप्रथम आज की विज्ञान ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में क्या कहती है ये देखते है ।
बिग बेंग (महाविस्फोट) का सिधांत सर्वप्रथम Georges Lemaître ने 1920 में दिया | इसके पश्चात आधुनिक वैज्ञानिक Stephen Hawking ने इसी सिधांत पर गहन कार्य किया और बहुत सही व्याख्या भी की जो काफी प्रसिद्ध हुई |

यह सिद्धांत कहता  है कि कैसे आज से लगभग १३.७ खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्म और घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ। इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिन्दु से हुयी थी जिसकी उर्जा अनंत थी |
उस समय मानव, समय और स्थान जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी अर्थात कुछ नही था ! इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी जिसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जा रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोट सिद्धांत कहा जाता है। महाविस्फोट नामक इस महाविस्फोट के धमाके के मात्र १.४३ सेकेंड अंतराल के बाद समय, अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं। भौतिकी के नियम लागू होने लग गये थे। १.३४वें सेकेंड में ब्रह्मांड १०३० गुणा फैल चुका था हाइड्रोजन, हीलियम आदि के अस्तित्त्व का आरंभ होने लगा था और अन्य भौतिक तत्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी ) बनने लगे थे |

ये बेचारे लुड्कते पुड्कते धीरे धीरे हमारे ग्रंथों में कही बातो पर ही आ रहे है | वो भी स्वतंत्र रूप से नही अपितु हमारे ग्रंथों को पढ़ कर ।

जबकि ये सारी थ्योरी सविस्तार वेदों, उपनिषदों, पुराणों आदि में वर्णित है ।

इन्होने सन 1700 के आस पास बताया पृथ्वी गोल है इससे पहले सपाट थी ।
पर संस्कृत और हिंदी में तो भू(गोल) सदा से ही कहते रहे है | क्या अपने कभी भूसपाट सुना??

इन्होने सन 1950 के आस पास बताया universe अंडाकार (egg-shaped) है ।
पर संस्कृत और हिंदी में तो ब्रह्माण्ड (ब्रह्म +अण्ड) सदा से ही कहते रहे है |
हमारे इन दो शब्दों ने ही उनके नाक में दम कर दिया था भाइयों !

इसीलिए तो लुच्चे मेकाले को 1835 में ब्रिटिश संसद में कहना पड़ा की हम ठहरे हाफ पेंट पहन कर गलियों में खेलने वाले बच्चे, हम भारतियों की कमर कैसे तोड़ेंगे ? फिर एक खड़ा होकर जोर से बोला उनकी संस्कृती पर चोट करके !!! (यहाँ देखें)

वेद इस संसार के प्राचीनतम ग्रन्थ तथा ज्ञान के स्रोत्र है इसमें कोई संदेह नही। अब वेदों में ब्रह्माण्ड की उत्पति की जो व्याख्या है वो देखते है |

नासदीय सूक्त ऋग्वेद के 10 वें मंडल कर 129 वां सूक्त है. इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ है। माना जाता है की यह सूक्त ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में काफी सटीक तथ्य बताता है. इसी कारण दुनिया में काफी प्रसिद्ध हुआ |


नासदासींनॊसदासीत्तदानीं नासीद्रजॊ नॊ व्यॊमापरॊ यत् ।
किमावरीव: कुहकस्यशर्मन्नभ: किमासीद्गहनं गभीरम् ॥१॥

उस समय अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति से पहले प्रलय दशा में असत् अर्थात् अभावात्मक तत्त्व नहीं था. सत्= भाव तत्त्व भी नहीं था, रजः=स्वर्गलोक मृत्युलोक और पाताल लोक नहीं थे, अन्तरिक्ष नहीं था, और उससे परे जो कुछ है वह भी नहीं था, वह आवरण करने वाला तत्त्व कहाँ था और किसके संरक्षण में था। उस समय गहन= कठिनाई से प्रवेश करने योग्य गहरा क्या था, अर्थात् वे सब नहीं थे।

न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या।आन्ह।आसीत् प्रकॆत: ।
आनीदवातं स्वधया तदॆकं तस्माद्धान्यन्नपर: किंचनास ॥२॥

उस  समय में मृत्यु नहीं थी और अमृत = मृत्यु का अभाव भी नहीं था। रात्री और दिन का ज्ञान भी नहीं था उस समय वह ब्रह्म तत्व ही केवल प्राण युक्त, क्रिया से शून्य और माया (स्रष्टि उत्पत्ति की ईछा ) के साथ जुड़ा हुआ एक रूप में विद्यमान था, उस माया सहित ब्रह्म से कुछ भी नहीं था और उस से परे भी कुछ नहीं था।

आत्मा वा इदमेक एवाग्र आसीन्नान्यत्किञ्चचन । स ईक्षत लोकान्नु सृजा इति ॥ १ ॥ – ऐतरेय उपनिषद् 1.1.1
प्रारंभ में एक अकेला ही परमात्मा (तेज पुंज) विधमान था इसके अतिरिक्त किसी का कोई अस्तित्व नही था इसके पश्चात परमात्मा की ईछा से स्रष्टि हुई |

ॐ तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः संभूतः ।
ॐ रूपी प्रस्फुटित नाद (ध्वनी) से पञ्च तत्वों की उत्पति हुई जिसमे सर्वप्रथम था आकाश |

आकाशाद्वायुः ।
आकाश से वायु |
वायोरग्निः ।
वायु से अग्नि |
अग्नेरापः ।
अग्नि से जल |
अद्भ्यः पृथिवी ।
जल से पृथ्वी |
पृथिव्या ओषधयः |
पृथ्वी से औषधियाँ |
ओषधीभ्योऽन्नम् |
औषधियों से अन्न |
अन्नात्पुरुषः  | – तैत्तिरीय उपनिषद् 2.1.2
और अन्न से पुरुष उत्पन्न हुआ  |
Explanation in English

इसलिए पृथ्वी को माता तुल्य कहा गया है परन्तु आजकल के लोग 1 नंबर के मुरख है प्रकृति को नष्ट करने पर तुले हुए  है  जबकि इसकी रक्षा उतनी अनिवार्य है जितनी हमारी माता की ।

दोस्तों उपरोक्त बताया गया वर्णन पूर्णता तर्क संगत तथा विज्ञान संगत है देखें कैसे?
ओंमकार से महाविस्फोट जिसके फलस्वरूप निकली उर्जा सर्वत्र फेलने लगी और आकाश तत्व की उत्पति हुई जितने भी तारे, पिंड आदि हम देखते है वे सभी उसी महाविस्फोट के पश्चात अस्तित्व में आये । उनमे से अधिकतर गेसीय पिंड है सतह किसी किसी में बहुत अल्प है, किसी में तो बिलकुल नही इसप्रकार वायु तत्व अस्तित्व में आया ।vedicbharat.com
वायु तत्व के बाद अग्नि  की उत्त्पत्ति  वायु के घर्षण से हुई . जितने   भी तारे है वो सब वायु के गोले है और उनके  घर्षण से ही  अग्नि की उत्पत्ति हुई । इसका उदहारण आज भी हम प्रथ्वी के वायु मंडल में किसी उल्का के प्रवेश करने पर अग्नि की उत्पति होती है, देखते है। जिसे हम टूटता तारा कहते है | अतः वायु की उपस्थति में घर्षण से अग्नि प्रकट हुई |

अग्नि से जल का निर्माण हुआ |
इसे हम विज्ञान के द्वारा समझ सकते है : एक बीकर में हाईड्रोजन  और एक बीकर में आक्सीजन ले कर  उन्हें एक नली से जोड़े . अब हम जैसे ही बेक्ट्री  के द्वारा स्पार्क  करेंगे हईड्रोजन के दो अणु आक्सीजन के एक  अणु  से मिल कर जल के एक अणु (H2O) का निर्माण कर देते है .  जल का निर्माण तब  तक नही होता जब तक की अग्नि/ऊष्मा न हो |
अंत में इन सभी तत्वों से पृथ्वी (ठोस/चट्टान आदि) की उत्पति हुई जब अत्यंत गर्म द्रव्य वायु की उपस्थिति में ठंडा होने लगता है तब वह ठोस रूप लेता है ठीक उसी प्रकार जैसे ज्वालामुखी से निकला लावा धीरे धीरे ठंडा होकर ठोस चट्टान बनता है |

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